चंडीगढ़। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की महासचिव एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा ने कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार किसानों की आर्थिक तौर पर कमर तोड़ने का षड्यंत्र रच चुकी है और प्रदेश की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार चुपचाप तमाशबीन बनी हुई है। केंद्र सरकार को तुरंत प्रभाव से चावल के एमईपी (मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस) का पुन: निर्धारण करना चाहिए, ताकि किसान को बर्बाद होने से बचाया जा सके। क्योंकि, चार दिन से धान की खरीद बंद होने से किसान परेशान हैं और बारिश के कारण मंडियों में पड़ी उनकी फसल भी लगातार भीग रही है।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि हर साल करीब 45 लाख मीट्रिक टन धान का देश से निर्यात होता है। इसमें से लगभग 23 लाख मीट्रिक टन धान हरियाणा का होता है। इससे पता चलता है कि निर्यात पर संकट खड़ा होने से सबसे अधिक नुकसान हरियाणा के किसानों को है। इसके बावजूद प्रदेश की भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार ने एक बार भी केंद्र सरकार से मिलने या फिर निर्यातकों की आवाज बनने की कोशिश नहीं की है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कितनी बड़ी विडंबना है कि मंडियों में धान की आवक इस समय पीक पर है और चार दिन से बंद खरीद को फिर से सुचारू कराने की दिशा में राज्य सरकार की ओर से कोई कदम तक नहीं उठाया गया है। इसका मकसद कुछ और न होकर किसानों को परेशान करना है, उन्हें नुकसान पहुंचाना है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि जब निर्यातक खुद चाहते हैं कि बाजार में बने रहने के लिए चावल का एमईपी 1200 डॉलर प्रति टन से घटाकर 850 डॉलर प्रति टन किए जाने की जरूरत है तो फिर केंद्र सरकार जानबूझकर उनकी बात को अनसुना कर रही है। केंद्र सरकार की मंशा है कि अभी निर्यात बंद रहे और मंडियों से उनके पूंजीपति मित्र औने-पौने दाम पर धान की खरीद कर लें। बाद में एमईपी घटाकर इन्हें चावल के निर्यात का स्वतंत्र बाजार मुहैया करवा दिया जाए। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मंडियों में बने हालात देखने से लगता है कि कर्ज में डूबे अन्नदाता को सरकार ने और अधिक कर्जवान बनाने की साजिश रची है। इससे किसान आर्थिक तौर पर और अधिक कमजोर हो जाएगा। इसलिए किसान को जिंदा रखने के लिए केंद्र सरकार को एमईपी के दाम का बिना देरी के पुन: निर्धारण करना चाहिए।