भ्रूण हत्या की तरह भारत में कन्वर्जन थेरेपी पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। शुक्रवार को शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में लैसबियन, गे, बायो सेक्सुअल, ट्रांसजेंडर लेखकों ने यह मांग उठाई। इस अवसर पर थर्ड जेंडर समुदाय को दुर्गा माता की तीसरी आंख का नाम भी दिया। अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार को दोपहर के सत्र में सात ट्रांसजेंडर लेखकों ने अपने अनुभव साझा किए।
पंजाब यूनिवर्सिटी की पहली ट्रांसजेंडर छात्रा और लेखक धनंजय चौहान ने कहा कि कन्वर्जन थेरेपी को लेकर सरकार को कड़ा फैसला लेना चाहिए। जो लैसबियन, गे, बायो सेक्सुअल, ट्रांसजेंडर (एलजीबीटी) की लैंगिक पहचान या फिर उनकी सेक्सुअल पसंद को बदलने की कोशिशें करते हैं, उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। ओडिशा भाषा की लेखक मीरा परिडा ने कहा कि महर्षि वाल्मीकि ने श्लोक से श्लोक बनाए। इसी तरह हमारे समाज के लोगों ने अपनी जरूरतें पूरी करने और सम्मान प्राप्त करने के लिए लेखक बनने का फैसला लिया है। लोगों ने उनका कई बार मजाक उड़ाया, इसे चैलेंज लेते हुए लेखन के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का फैसला लिया है।
भारत की पहली ट्रांसजेंडर सिविल सर्वेंट ने कहा कि अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए जागरूक होना जरूरी है। अधिकारों और कानूनी मामलों की जानकारी होना बहुत जरूरी है। लेखक ऋत्विक चक्रवर्ती ने कहा कि संघर्ष सभी लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए किया जाना चाहिए। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए थर्ड जेंडर से आने वाली भारत की पहली प्रधानाचार्य मानबी बंघोपाध्याय ने कहा कि जिस प्रकार साहित्य भगवान की देन है। उसी तरह ट्रांसजेंडर भी भगवान की देन है। समाज में अब बदलाव आ रहा है। जल्द ही ट्रांसजेंडर साहित्य भी आएगा।