फिर गिरी गर्दन सर कटने लगे हैं, लोग बंटते ही खुदा बंटने लगे हैं, नाम जो पूछे कोई डर लगता है, अब किसे पूछे कोई डर लगता है, कितनी बार मुझे सूली पे टांगा है, चंद लोगों ने जागो जागो जागते रहो हे, जागो जागो जागते रहो…। गीतकार गुलजार ने अपने लिखे इस गीत को शिमला के गेयटी थियेटर के गौथिक हॉल में गुनगुनाकर व्यवस्था पर तंज कसा। उनके लिखे इसे गीत को यहां जाने-माने फिल्म निर्देशक, गीतकार और पटकथा लेखक विशाल भारद्वाज ने भी आवाज दी। गुलजार ने बताया कि गीत कैसे रचते हैं और इनमें साहित्य कैसे आता है।
केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव उन्मेष के दूसरे दिन ‘फिल्मी गीतों में साहित्यिक सौंदर्य’ विषय पर गुलजार के साथ विशाल भारद्वाज की बातचीत का यहकार्यक्रम बहुत रोचक रहा। इसमें गुलजार के रचे गीतों को विशाल भारद्वाज और भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी निरुपमा कोतरू ने गाया भी। गिटार पर मयूख सरकार ने साथ दिया। गुलजार और विशाल कई फिल्मों के गीतों की रचना प्रक्रिया पर भी बात करते रहे। इनमें ‘दिल तो बच्चा है जी’, ‘इब्नबतूता बगल में जूता’ जैसे कई गीतों को रचने की प्रक्रिया पर उन्होंने चर्चा की। विशाल ने कहा कि गुलजार ने गीतों में साहित्य को स्थान दिया है। निरुपमा ने कहा कि गुलजार सरल सा गीत रचकर बहुत गहरी बात कर जाते हैं।