नगर पालिका और नगर परिषद चुनाव को लेकर कांग्रेस का स्टैंड स्पष्ट था कि पार्टी यह चुनाव नहीं लड़ेगी। ऐसे में कांग्रेस की हार या जीत की बात करने वाले जानबूझकर गलत प्रचार कर रहे हैं। 1-1 वार्ड में कांग्रेस के 4-4, 5-5 कार्यकर्ता चुनाव लड़ रहे थे। क्योंकि कांग्रेस के पास स्थानीय इकाई का चुनाव लड़ने वाले कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज है। एक-एक वार्ड से कई-कई कार्यकर्ता चुनाव लड़ने का दम रखते हैं।
लेकिन बीजेपी-जेजेपी या अन्य दलों के पास एक-एक वार्ड में बमुश्किल एक-एक कार्यकर्ता ऐसा है जो चुनाव लड़ने की स्थिति में है। इसलिए ये पार्टियां बिना किसी संकोच के एक कार्यकर्ता को एक वार्ड का टिकट दे सकती हैं। लेकिन कांग्रेस छोटी इकाई के लिए किसी एक कार्यकर्ता को पार्टी का टिकट देकर बाकि कार्यकार्ताओं को नाराज नहीं करना चाहती।
इसलिए बहुत सोच समझकर नेतृत्व ने नगर पालिका और नगर परिषद का चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया था। साथ ही कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने की पूर्ण आजादी दी थी ताकि वो अपने स्तर पर लोकतंत्र के इस पर्व में हिस्सा ले सकें।
स्पष्ट है कि इस चुनावी रेस में बीजेपी-जेजेपी अकेली दौड़ रही थी। बावजूद इसके वो क्लीन स्वीप नहीं कर पाई। 19 निर्दलीय और 21 बीजेपी के चेयरमैन जीते जबकि 30 दूसरे नंबर पर रहे जबकि आम आदमी पार्टी पैदा होने से पहले खत्म हो गई । दूसरी ओर जेजेपी और आईएनएलडी दोनो को हरियाणा वालो ने ताला लगा दिया। इससे सारे चुनाव से स्पष्ट है कि इकलौता विकल्प होने के बावजूद लोग इस बीजेपी जेजेपी गठबंधन को वोट नहीं देना चाहते थे। कांग्रेस और उसके बड़े नेताओं की नजर विधानसभा और लोकसभा पर …. हार-जीत का असली फैसला तभी होगा।