चुनाव का मौसम आते ही विभिन्न पार्टियां नारों से मतदाताओं को प्रभावित करती है। लोकसभा चुनाव में ये 1952 से प्रभावित करते रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार नारे चुनाव में न सिर्फ अहम भूमिका निभाते हैं बल्कि जनमत को दिशा देने का कार्य भी करते हैं। ऐसे नारों का क्या मनोविज्ञान होता है। मोदी सरकार’ 2014 में यह नारा लोगों की जुबां पर ऐसा छाया कि भाजपा पूरे बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में काबिज हो गई। अब 10 साल बाद इस नारे को विस्तार मिला है-’ फिर एक बार…मोदी सरकार’। नारे चुनाव में न सिर्फ अहम भूमिका निभाते हैं, बल्कि जनमत को दिशा देने का कार्य भी करते हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एसके द्विवेदी कहते हैं कि ‘चुनावी नारों का बहुत महत्व होता है। कम शब्दों में अपनी बात को प्रभावी ढंग से इन्हीं के माध्यम से लोगों तक पहुंचाया जाता है। बड़ी संख्या में अशिक्षित लोगों को नारों के माध्यम से ही राजनीतिक दल अपनी बात समझाते हैं।’ इस बार भी नारों की लड़ाई है। चुनाव प्रचार करने निकल रहीं भाजपा कार्यकर्ताओं की टोलियां ‘एक ही नारा एक ही नाम, जय श्रीराम जय श्रीराम’ और ‘जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे’ नारे के साथ दिख रहीं हैं तो विरासत टैक्स को लेकर मचे घमाचान के बीच चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मंच से यह कहना कि ‘कांग्रेस की लूट जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी’ अब धीरे-धीरे लोगों की जुबान पर चढ़ रहा है। वहीं कांग्रेस की अगुवाई वाला आइएनडीआइए ‘हाथ बदलेगा हालात’ का चुनावी नारा लेकर मैदान में कूदा है। वह बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और किसानों की आय दोगुणी न होने के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है।
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