सरकाघाट। हिमाचल सरकार ने एक तरफ़ मनरेगा मज़दूरों को राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड से बाहर कर दिया है लेकिन दूसरी तरफ उन्हीं से दस्तावेज जमा करने के नाम पर करोड़ो रूपये ख़र्च करवाने का अभियान चलाया है। जिसपर मज़दूर संगठन सीटू से सबंधित मनरेगा व निर्माण मज़दूर यूनियन ने कड़ा एतराज़ जताया है। यूनियन ने मनरेगा मज़दूरों को राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड से बाहर करने के फ़ैसले के वरोध में अक्टूबर माह के प्रथम सप्ताह में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया है।
यूनियन के राज्य महासचिव व बोर्ड के सदस्य भूपेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले एक साल से बोर्ड के सचिव व अन्य विभागीय कर्मचारियों ने भवन एवं अन्य कामगार क़ानून की उलंघन्ना की है और इसके विपरीत दिशा में अपनी मनमर्ज़ी से निर्णय लेकर मनरेगा मज़दूरों के पंजीकरण और उन्हें मिलने वाली सहायता पर रोक लगा दी है। जिसका यूनियन कड़ा विरोध कर रही है और गत 22 जुलाई को हुई बोर्ड बैठक में भी इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया गया है जिसके चलते इसे दोबारा सरकार के विधि विभाग को स्पस्टीकरण के लिए भेजा गया है।
भूपेंद्र सिंह ने बताया कि क़ानून की धारा 12(1) के तहत ये बात साफ़ साफ़ बताई गई है कि कोई भी भवन व अन्य निर्माण कार्य करने वाला मज़दूर जो गत बारह महीनों में 90 दिन से अधिक दिन काम करता है और जिसकी उम्र 18-60 वर्ष है वो बोर्ड का सदस्य बनने के लिए पात्र है। वहीं इसी क़ानून की धारा 2(डी)में भवन व अन्य निर्माण कार्यों का विवरण दिया गया है तथा इसी के (ई)धारा में मज़दूर को परिभाषित किया गया है। इन्ही धाराओं के तहत अब तक बोर्ड में मज़दूर पंजीकृत हुए हैं और उन्हें लाभ भी मिलते रहे हैं लेकिन पिछले एक साल से बोर्ड के अधिकारियों ने अपनी मनमर्ज़ी से क़ानून को तोड़ मरोड़ करके इसे रोक दिया है।
यही नहीं बोर्ड राज्य कार्यालय से पिछले तीन साल के आवेदनों को अपनी मनमर्ज़ी से ज़िलों की वापिस भेज दिया गया है और अब 22 और 23 अगस्त को दो और पत्र जारी कर दिए गए हैं जिससे कुछ गैर ज़रूरी दस्तावेज इक्कठे करने का अभियान चलाया जा रहा है जिसके चलते एक मज़दूर को डेढ़-दो सौ रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। हालांकि ये सब दस्तावेज मज़दूरों ने पहले ही जमा किए हैं। लेकिन मूल मांगो से ध्यान हटाने के लिए ये सब किया जा रहा है और बोर्ड से पंजीकृत साढ़े चार निर्माण मज़दूरों के दस्तावेज फोटोस्टेट पर दस करोड़ रुपये ख़र्च होंगे और समय भी बर्बाद होगा। जबकि बोर्ड इन्हें पिछले तीन साल के लंबित लाभ जारी नहीं कर रहा है।
हालांकि इस बार सभी मज़दूर यूनियनों ने 2 सितंबर को बोर्ड के सचिव से मिलकर विरोध दर्ज कराया था, लेकिन उसके बाबजूद अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।भूपेंद्र सिंह ने बताया कि बोर्ड के कर्मचारियों द्धारा क़ानून की निरंतर जारी उलंघन्ना के चलते अब इस मामले को हाईकोर्ट में उठाने का निर्णय लिया है और बोर्ड की कार्यप्रणाली के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन करने का भी निर्णय लिया है जिसकी योजना 17 सितंबर को हमीरपुर में होने जा रही सीटू की मीटिंग में तैयार की जाएगी और उसके बाद सभी मज़दूर संगठनों की ज्वाइन्ट बैठक आयोजित करके अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे और कोर्ट में भी केस दर्ज किया जाएगा।