(रितेश चौहान)- केंद्र सरकार द्धारा पेश किए केंद्रीय बजट प्रस्ताव में मनरेगा के बजट में तीस प्रतिशत कटौती कर दी है।वित्त मंत्री ने 72 हज़ार करोड़ से घटा कर इसे 60 हज़ार करोड़ रुपये कर दिया है।इसी बजट से पिछले साल की लंबित अदायगी भी की जाएगी।इससे मज़दूरों को निर्धारित सौ दिनों का काम भविष्य में मिलना नामुमकिन हो जायेगा।सीटू से सबंधित मनरेगा और निर्माण मज़दूर यूनियन ने वित्त मंत्री और मोदी सरकार के इस बजट को मनरेगा मज़दूर विरोधी बताया है।यूनियन के राज्य महासचिव और पूर्व ज़िला परिषद सदस्य भूपेंद्र सिंह ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि ये सरकार शुरू से ही मनरेगा योजना को कमज़ोर करने के लिए फ़ैसले ले रही है और अब धीरे धीरे इसके लिए बजट में कटौती करके इसे कमज़ोर करने की नीति लागू कर रही है।
उन्होंने बताया कि देश में पंजीकृत सभी जॉबकार्ड धारकों को यदि सौ दिन का रोज़गार देना होगा तो केन्द्र सरकार को साल से एक लाख बीस हजार करोड़ रुपये का बजट प्रावधान करना होगा लेक़िन वर्त्तमान में यह बजट ज़रूरत से पचास प्रतिशत ही है।इसलिये ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा से रोज़गार के जो अवसर गरीब परिवारों और विशेषतौर पर महिलाओं को रोज़गार के अवसर मिले थे लेकिन मोदी सरकार इन्हें चरणबद्ध तरीके से छीन रही है जिसका यूनियन कड़ा विरोध करेगी।भूपेंद्र सिंह ने कहा कि वित्त मंत्री ने अपने बजट प्रस्ताव में अमीरों के लिए जिसमें बड़े बड़े पूंजीपतियों को बहुत ज्यादा छूट दी है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार देने वाली योजना का बजट घटा दिया है।यूनियन ने तय किया है कि मनरेगा के बजट में की गई कटौती को लेकर गांव स्तर पर अभियान चलाया जाएगा और 15 मार्च को खण्ड स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे और 5 अप्रैल को दिल्ली में संसद के बाहर उग्र प्रदर्शन किया जायेगा।
इससे पहले यूनियन सरकार के इस मनरेगा योजना विरोधी बजट के बारे में जागरूकता अभियान चलाएगी जिसकी रूपरेखा तैयार करने के लिए 24 फ़रवरी को मंडी में ज़िला स्तरीय अधिवेशन आयोजित किया जायेगा।उन्होंने सरकार पर ये भी आरोप लगाया है कि एक तरफ़ बजट में कटौती की जा रही है वहीं दूसरी तरफ ऑनलाईन हाज़री और बीस कार्यों की शर्त लगाई गयी है जिससे मज़दूरों को काम लेने में और भी अड़चनें पैदा हो गई है।मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां गरीबों के ख़िलाफ़ और अडानी अम्बानी जैसे खरबापियों को ही फ़ायदा देने वाली है जिसका पर्दाफ़ाश कुछ दिन पहले ही हो गया है कि किस प्रकार मोदी सरकार ने जीवन बीमा कंपनी और भारतीय स्टेट बैंक और कर्मचारियों की भविष्य निधि का पैसा भी अडानी को दे दिया गया जिसके कारण वो दुनियाँ में दूसरे नंम्बर के अमीर आदमी बन गए थे और अब घोटाले के सामने आने से उनके शेयर बाजार में लगातार लुढ़क रहे हैं।
इस सारे प्रकरण से ये साफ़ हो गया है कि मोदी सरकार मनरेगा और अन्य महदूरों व मेहनतकश जनता के विरोध की नीतियां लागू कर रही है और अडानी-अंबानी की कम्पनियों को बढ़ावा दे रही हैं।