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हरियाणा की माटी से जंतर मंतर से कोर्ट तक अखाड़ा

-कमलेश भारतीय
धूमिल की बहुचर्चित कविता है -संसद से सड़क तक यानी आम आदमी की न्याय की आस जब संसद से टूट जाती है तब वह जयप्रकाश नारायण यानी जेपी की तरह सम्पूर्ण क्रांति का उद्घोष करता सड़क पर यानी आंदोलन पर उतर आता है । महिला पहलवानों के कुश्ती संघ के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषम शरण सिंह के यौन उत्पीड़न के खिलाफ आंदोलन तो जंतर-मंतर पर शुरू हुआ लेकिन इसका पटाक्षेप कोर्ट में होने जा रहा है । हालांकि यह बताया जा रहा है कि यह खिलाडियों की ओर से अब तक का सबसे लम्बा आंदोलन रहा फिर भी इसकी समाप्ति इतनी दुखदाई ? क्यों ? पहलवानों की कोर कमेटी का मानना है कि इस तरह जंतर-मंतर पर आंदोलन से सोशल मीडिया पर शेयर की जाने वाली पोस्ट्स से माहौल बिगड़ता जा रहा था यानी देश की छवि धूमिल होने की पी टी उषा की दुहाई को आखिरकार स्वीकार कर ही लिया पहलवानों ने ! यही नहीं अब पहलवानों के सामने एशियन गेम्स और विश्व कुश्ती चैंपियनशिप भी हैं और पंद्रह रुपये वाले पदक फिर जीतने की तमन्ना जाग उठी है ! हालांकि यह बात भी आ रही है कि पहलवान जब यही पंद्रह रुपये की कीमत वाले पूरी मेहनत से जीते पदक हरिद्वार जाकर गंगा में बहाने गये थे तब इनकी केंद्रिय नेतृत्व से बात हो गयी थी और इनका हृदय परिवर्तन शुरू हो गया था ! इनकी कई मांगें मान ली गयी थीं ! नेशनल कैंप दिल्ली की बजाय पटियाला शिफ्ट कर दिया गया और महिला कोच बदल दी गयी । बृजभूषण के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई । दूसरी ओर नाबालिग पहलवान ने बयान बदल लिये तो दिल्ली पुलिस ने फिर प्रर्दशन की इजाजत नहीं दी । इस तरह अब जंतर-मंतर से सड़क पर नहीं बल्कि कोर्ट में महिला पहलवानों का आंदोलन शिफ्ट हो गया । कितनी तेजी से आंदोलन का घटनाक्रम घूमा और कहां से चला अंर कहां पहुंच गया आंदोलन ! हालांकि विनेश फौगाट कह रही हैं कि हमारी प्राथमिकता आज भी दोषी को सजा दिलवाना ही है । साक्षी मलिक ने कहा कि देशवासियों के सहयोग से ही आंदोलन अपने अंजाम पर पहुंचा ! अरे साक्षी यह कैसा अंजाम ? गाने की पंक्ति याद आ रही है -ऐ मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया ! ऐ महिला पहलवानों आपके आंदोलन के अंजाम पे भी रोना आया ! सच्ची बात कही बजरंग पूनिया ने कि यह आंदोलन आसान नहीं रहा । इसे तोडने के लिये लालच और डराने का प्रयास किया गया ! हम डटे रहे और अब खेल पर भी फोकस करेंगे !
यह देश का दुर्भाग्य है कि खिलाड़ियों को खेल का मैदान छोड़कर जंतर-मंतर पर प्रदर्शन के लिये आना पड़ा और पुलिस के दुर्व्यवहार को झेलना पड़ा ! जो नेता कभी घर बुला कर चाय पिलाते थे उनकी घोर उपेक्षा से इन महिला पहलवानों का दिल टूट गया । वही बात :
रहते थे कभी जिनके दिल में हम जान से भी प्यारों की तरह
आज उन्ही के कूचे पे बैठे हैं गुनहगारों की तरह !
इस टूटे दिल से कभी आंदोलन सफल नहीं होते । और यह आंदोलन भी लम्बा चलने के बावजूद असफल रहा । यह कहने में कोई संकोच नहीं ! दूसरी बात करियर और आंदोलन मे से भी एक को ही चुनना था ! जैसे मोहन राकेश के चर्चित नाटक लहरों के राजहंस में नंद की स्थिति को प्राप्त कर गये पहलवान ! नंद भी पहले बुद्ध से दीक्षा लेकर अपने बाल कटवा लेता और जब उसकी पत्नी सुंदरी खरी खोटी सुनाती है तो वह कहता है कि मैं जाकर बुद्ध से पूछता हूं कि मेरे बालों का क्या किया ! अब ये पहलवान भी नेताओं से पूछेंगे कि हमारे आंदोलन का क्या किया ?

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