हिमाचल में 12 व 13 अगस्त को हुई भारी वर्षा तबाही का कारण बनी है। जिसके चलते प्रदेश में भारी मात्रा में नुक्सान हुआ हैं. कही भूस्खलन, बाढ़ तो कही बादल फटने से भारी तबाही हुई हैं. वही 12 व 13 अगस्त इन दो दिनों में प्रदेश के कई भागों में एक घंटे में 100 मिलीमीटर से भी ज्यादा बारिश हुई थी। निकासी की उचित व्यवस्था न होने से बारिश का पानी पहाड़ों में भर गया। इससे ढलानों में गुरुत्वाकर्षण बढ़ गया और पहाड़ दरक गए और जगह-जगह तबाही मच गई| भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के चार दिन के सर्वेक्षण में यह बात उभर कर सामने आई है।
जीएसआइ की कई टीमें राज्य में भूस्खलन व भूधंसाव का सर्वेक्षण कर रही हैं। मंडी जिले में जीएसआइ की वरिष्ठ विज्ञानी श्रेयसी महापात्रा और वांग्शीतुला ओझुकम के हवाले सर्वेक्षण का जिम्मा है। स्थानीय प्रशासन के साथ पिछले दो दिन से प्रभावित क्षेत्रों में सर्वेक्षण का काम चल रहा है। टीम को शुक्रवार को वापस लौटना था। सर्वेक्षण का काम अब सोमवार तक पूरा होने की संभावना है। सर्वेक्षण की प्रारंभिक रिपोर्ट एक सप्ताह में आएगी। रिपोर्ट के आधार पर चिन्हित क्षेत्रों में मृदा परीक्षण व अन्य जांच की जाएंगी। मृदा परीक्षण के आधार पर प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण कार्यों पर कोई निर्णय होगा।
वही, अब पहाड़ी बचाने का जिम्मा भी प्रसाशन ने GSI को सौंप दिया हैं. यानी अब मंडी शहर की टारना की पहाड़ी को बचाने का जिम्मा जीएसआइ के हाथ में है। पहले आइआइटी मंडी के विशेषज्ञों से भी सर्वेक्षण करवाया गया था। टारना की पहाड़ी को दोबारा पटरी पर लाने के लिए जीएसआइ ने करीब एक साल का समय मांगा है। इस अवधि में टारना की पहाड़ी को कई प्रकार की जांच से गुजरना होगा। दो दिन हुई भारी बारिश हिमाचल में तबाही का कारण बनी है। भूस्खलन व भूधंसाव का प्रमुख कारण अब तक की जांच में भारी वर्षा ही सामने आया है। जल्द ही कुछ चिन्हित स्थानों का मृदा परीक्षण व अन्य जांच की जाएंगी। हालांकि, GSI की टीम द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में सर्वेक्षण का काम जारी हैं, जिसके बाद ही प्रारंभिक रिपोर्ट सामने आएगी और उसी के आधार पर चिन्हित क्षेत्रों में जांच की जाएगी|