शिमला। हिमालय फॉरेस्ट्री रिसर्च इंस्टीट्यूट (HFRI), शिमला के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वनीत जिष्टू ने लद्दाख की बहुमूल्य औषधीय वनस्पतियों के संरक्षण पर जोर दिया है। उनके नेतृत्व में एचएफआरआई के वनस्पति वैज्ञानिकों की टीम ने कारगिल जिले में छह दिवसीय “औषधीय वनस्पति जागरुकता अभियान” चलाया।
डॉ. वनीत जिष्टू ने बताया कि इस अभियान के अंतर्गत शिमला स्थित एफआरआई ने लेह के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोवा रिगपा के साथ मिलकर अनेक कार्यक्रम आयोजित किए। केंद्र सरकार के नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड के एक प्रोजेक्ट के तहत इस अभियान का वित्त पोषण किया गया। इस कार्य में डॉ जिष्टु के पीएचडी शोधार्थियों बृजभूषण और हसीना बानो ने सहयोग दिया। उन्होंने बताया कि सानी खानी खार गोम्पा (पदुम) और रंगदुम गोम्पा के साथ ही खारसुम, सानी, रंगदुम और शान्कू, और कुकशो आदि गांव में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए।
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर जिष्टु और उनकी टीम ने स्थानीय बौद्ध भिक्षुओं विद्यार्थियों और युवाओं के साथ स्थानीय औषधीय वनस्पतियों के संरक्षण पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने इन स्थानीय वनस्पतियों के महत्व और उनके चिकित्सा की उपयोग के बारे में ग्रामीणों को बताया कि यह पौधे लद्दाख की अत्यंत समृद्ध अमची चिकित्सा पद्धति के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं। इसे लद्दाख की प्राचीन सोवा रिगपा के नाम से भी जाना जाता है।
डॉ. वनीत जिष्टू ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख का कारगिल ज़िला प्राचीन काल से दुर्लभ औषधीय जड़ी बूटियों के लिए प्रसिद्ध है। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया, किसी अपनी प्राचीन विरासत से जुड़ी जड़ी बूटियों के संरक्षण को अपना पवित्र कर्तव्य समझें। यह लद्दाख क्षेत्र के परंपरागत चिकित्सा ज्ञान को भावी पीढियों तक पंहुचाने के लिए आवश्यक है।