यह हौसला कैसे झुके ,ये आरजू कैसे रुके मंजिल मुश्किल तो क्या धुंधला साहिल तो क्या।हिम्मत और हौंसले से भरे हिंदी फिल्म डोर के इस गाने की पंक्तियों को सार्थक कर दिखाया सीबीएसई 12वी के नतीजों में यमुनानगर की कशिश ने ।अपने हौसलों से अपनी दिव्यांगता और मुश्किलों को दरकिनार करते हुए यमुनानगर की छात्रा कशिश ने 12 वी आर्ट्स स्ट्रीम में 94.2 प्रतिशत अंक लेकर अपने इंस्टिट्यूट में दूसरा स्थान प्राप्त किया।यमुनानगर की कशिश इंडियन ब्लाइंड इंस्टीट्यूट चंडीगढ़ में पढ़ती है।जानकारी के अनुसार 60 प्रतिशत तक कशिश देख नही पाती और स्कीन कलर से ग्रसित है ।इन सबके बावजूद उसके हौंसले ने आज उसने अपने इंस्टीट्यूट में दूसरे स्थान पर बाजी मारी। रिजल्ट घोषित होते ही पूरा परिवार खुशी से फूला नहीं समा रहा वही कशिश का कहना है कि उनके परिवार और टीचर्स की सपोर्ट से यह सब कुछ संभव हो पाया है साथ ही उसने सरकार से मांग की है इस तरीके के डिसएबल बच्चों के लिए हर स्कूल में सीटें होनी चाहिए ताकि उनको इतनी दूर ना जाना पड़े जैसे उनको चंडीगढ़ जा कर पढ़ाई करनी पड़ी और काफी संघर्ष करना पड़ा लेकिन आज वह खुश हैं कि उनकी मेहनत ने उन्हें यह मुकाम दे दिया। वही हरियाणा के स्कूल शिक्षा मंत्री कवँरपाल गुर्जर ने भी कशिश की इस कामयाबी पर उसे फोन पर बधाई दी और उसके उज्जवल भविष्य की कामना की।
कशिश ने बताया कि पहले वह यमुनानगर में एक नॉर्मल स्कूल में ही पढ़ती थी। धीरे-धीरे जब हालात चेंज हुए तो उसे चंडीगढ़ इंडियन ब्लाइंड इंस्टीट्यूट में जाना पड़ा हालांकि उसके लिए एक जगह से दूसरी जाना बेहद मुश्किल था और हॉस्टल में रहकर पढ़ाई करना लेकिन परिवार का सपोर्ट मेरे साथ था और मैंने खुद ही ठान लिया था कि जब मेरा रिजल्ट आए तो मैं साइड में बैठ कर रो ना। मैंने ठान लिया था कि सभी एक्टिविटी में पार्टिसिपेट करूंगी पूरे उस साल को इंजॉय किया। जब पेपरों को थोड़ा समय रह गया था उस समय सब चीजों से ध्यान हटा कर पढ़ाई में ध्यान लगाया दिन रात मेहनत की और जहां चाह वहां राह, इस लाइन में मुझे बहुत मोटिवेट किया। उन्होंने कहा कि शहरों में मेरे जैसे बच्चों के लिए लोग जागरुक नहीं है लेकिन चंडीगढ़ पहुंच कर मुझे बहुत फायदा मिला मैं अपने आप को पहचान पाई अपनी खूबियों और खामियों को समझ पाई। अपने पैरों पर खड़ी हो पाई। मेरे लिए बहुत मुश्किल था लेकिन फिर भी मैंने बहुत संघर्ष किया। कशिश ने कहा कि मेहनत और लगन से सब कुछ हासिल किया जा सकता है और मेरी मेहनत में ही मुझे यह मुकाम दिलवाया है और मै बेहद खुश हूं।सरकार से यही गुजारिश है कुछ प्राइवेट स्कूल से है वह इन चीजों को नकार देते हैं। सरकार से यही कहना चाहते हैं इस बारे में जागरूकता और स्कूलों में ऐसा कुछ कंपलसरी किया जाए डिसएबल बच्चों को स्टडी में कुछ सीट्स दी जानी चाहिए ।
अपनी मेहनत से अपने इंस्टिट्यूट में दूसरे स्थान पर परचम लहराने वाली कशिश की माँ ने बताया की इन हालातों से जूझते हुए मेरी बेटी ने मारा सर फक्र से ऊंचा कर दिया। जितनी उम्मीद थी उससे ऊपर कर दिया मां के लिए से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता। सब ने सपोर्ट किया पूरे घर में पूरे परिवार ने आज मेरा बच्चा यहां तक पहुंच पाया टीचर्स का भी बहुत बड़ा योगदान है। जिन्होंने मेरी बेटी का मार्गदर्शन किया। वही कशिश के दादा का कहना है कि आज मेरी पोती के मेरा सर गर्व से ऊंचा कर दिया ।वही वह भावुक होते हुए कहा कि अगर आज मेरा छोटा भाई भी होता तो वह भी उसको देखकर बहुत खुश होता । बचपन से ही बहुत मेहनती रही है गोद में खिलाया है एक-एक पल अपनी पोती के साथ बिताया हुआ याद है। इसकी जो मेहनत और लगन थी उसी के कारण यह सब संभव हो पाया है। दिव्यांग होते हुए भी कशिश ने ये साबित कर दिया है कि हालात कैसे भी हो मेहनत और लगन से कामयाबी मिलती जरूर है।