देश के प्रतिष्ठित कृषि विज्ञानिको के अनुसार, तकनीकी तौर पर नैनो यूरिया पहले से प्रचलित दानेदार यूरिया का विकल्प नही बन सकता और ना ही कृषि विश्वविधालयो व संस्थानो ने इसे अपनी फसलो की सम्रग सिफारिश मे अनुशंसित किया है! आर्थिक तौर पर भी नैनो यूरिया किसान हितेषी नही है, क्योकि आधे लीटर नैनो यूरिया का दाम 230 रुपये है जो कि दानेदार यूरिया के एक बेग (45 किलो) के दाम के लगभग बराबर ही है! इन सब तथ्यों के बावजूद, सरकार द्वारा नैनो यूरिया का दुष्प्रचार दुर्भाग्यपूर्ण और सहकारी संस्था इफको द्वारा इसका उत्पादन और किसानों को जबर्दस्ती बेचना, प्रतिस्पर्धा अधिनियम-2002 का खुला उल्लंघन है ! जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिए घातक साबित हो सकता है! इसलिए राष्ट्रीय हित में माननीय सर्वोच्च न्यायालय को नैनो यूरिया की जांच जल्दी करवानी चाहिए!
कृषि रसायन विज्ञान के अनुसार, रासायनिक रूप में एक बैग (45 किलो) यूरिया में 46% नाइट्रोजन होती है, जिसका मतलब है कि 45 किलोग्राम यूरिया में लगभग 20 किलोग्राम नाइट्रोजन है। इसके विपरीत, 500 मिलीलीटर नैनो यूरिया में 4% नाइट्रोजन की दर से कुल 20 ग्राम नाइट्रोजन होती है। तब सामान्य सी बात है कि नैनो यूरिया की 20 ग्राम नाइट्रोजन दानेदार यूरिया की 20 किलोग्राम नाइट्रोजन की भरपाई कैसे कर सकती है। जहा तक इफको द्वारा नैनो यूरिया के फसलों के पत्तों पर छिड़काव के कारण ज्यादा प्रभावशाली होने के खोखले दावों की बात है तो दानेदार यूरिया भी पूरी तरह से पानी मे घुल नशीन होने से 2-5% छिड़काव की सिफारिश कृषि विश्वविद्यालय ने सभी फसलों मे पहले ही की हुई है, यानी जो तथाकथित लाभ 230 रुपये दाम वाला आधा लीटर नैनो यूरिया छिड़काव से मिलेंगा, उसे किसान मात्र 10 रूपये दाम के 2 किलो दानेदार यूरिया (2% यूरिया) प्रति एकड़ छिडकाव द्वारा पहले से ही ले रहे है !
कृषि विज्ञान के अनुसार, पौधों को प्रोटीन बनाने के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, दलहन जैसी फसलों मे लगभग पूरा स्रोत मिट्टी के बैक्टीरिया से प्राप्त करते हैं जो पौधे की जड़ों में रहते हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को तोड़ने की क्षमता रखते हैं, या फिर अनाज व दुसरी फसलो मे यूरिया जैसे रसायनों से पौधों नाइट्रोजन प्रयोग करके ज्यादा उत्पादन करते है। भूमि मे नाइट्रोजन की कमी से अनाज, तिलहन, आलू आदि फसलों की उन्नत किस्मों के उत्पादन मे 50-60% तक की कमी देखी गई है! भारत जैसे 135 करोड़ घनी आबादी वाले देश मे, जहां वर्ष -2022 मे जल्दी गर्मी आने से मात्र 5% गेहूं उत्पादन में कमी होने से ही, जब सरकार को खाद्य सुरक्षा खतरे की आहट सुनाई देने लगे, तब तकनीकी रूप से बेकार नैनो यूरिया का सरकार द्वारा उत्पादन और विपणन देश की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित होगा! क्योंकि एक टन गेहूं ,चावल, मक्का उत्पादन के लिए फसलो को लगभग 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन की जरूरत होती है फसलों की उन्नत किस्में मे भी यूरिया की प्रभावशीलता मात्र 60% तक ही होती है। 3 सितम्बर – 2022 के “दी हिन्दू अखबार” में छपे लेख मे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एनके तोमर ने कहा, भले ही काल्पनिक रूप में, आधा लीटर सरकारी नैनो यूरिया 100% प्रभावी रूप से पौधों को उपलब्ध हो , लेकिन यह केवल 368 ग्राम अनाज पैदा करेगा। इसलिए, नैनो यूरिया पर किये जा रहे सरकारी प्रयास सार्वजनिक धन की बर्बादी होती है। इफको के नैनो यूरिया पर दावे निराधार है और किसान व कृषि के लिए विनाशकारी होगा! इस बारे प्रोफेसर तोमर द्वारा नीति आयोग को लिखे पत्र का सरकार ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया ! इसलिए इस राष्ट्रिय विरोधी वैज्ञानिक व प्रशासनिक घोटाले की जांच माननीय सर्वोच्च न्यायालय को राष्ट्रीय हित में जल्दी से जल्दी करवानी चाहिए!