वारियां, नालागढ़, राजलक्ष्मी संविद् गुरुकुलम् सैनिक स्कूल के अंतर्गत आयोजित त्रिदिवसीय परम वात्सल्य सत्संग के प्रथम दिवस का शुभारम्भ दीदी माँ साध्वी रितम्भरा जी के द्वारा माँ वीणापाणि के सम्मुख दीप प्रज्जवलन से हुआ। उसके पश्चात् आयोजन समिति के सदस्य हरबिलास जिन्दल, मास्टर सुरेन्द्र शर्मा, संजय भैया, राम गोपाल अग्रवाल, चन्द्र शेखर अवस्थी ”प्रिंस“, सुमन लता, संजय कुमार आदि ने शाल एवं हिमाचली प्रतीक चिन्ह देकर साध्वी रितम्भरा का सम्मान किया।
दीदी माँ साध्वी रितम्भरा ने अपने प्रवचनों की रसवर्षा करते हुए कहा कि समविद् गुरुकुलम् मंे भारत के भविस्य का निर्माण हो रहा है, यह एक साधना स्थली है और यहां पर छात्र साधनारत् होकर मनुषत्व को धारण करने की प्रक्रिया में लगे हैं। हमें अपने जीवन में सबसे पहले अपने मार्ग का चयन करना चाहिए और ये भी समझना चाहिए कि हमारा मनुस्य शरीर में आने का प्रयोजन क्या है । मनुष्य की काया मिट्टी की होती है किन्तु उसकी चेतना परमात्मा की होती है । परमात्मा की कृपा के बिना प्रकृति के सुख की कामना करना मात्र भ्रांति है।
इन्द्रियां जिस विशय के रस में डूबतीं हैं और मन आनन्दित होता है तो यह स्थाई सुख नहीं होता है। स्थाई सुख तो हमारी आत्मानुभूति से प्राप्त होता है। व्यक्ति जीवन भर भौतिक सुख की तलाश में भटकता रहता है वह सुख प्राप्त करने का जितना प्रयास करता है दुख उतना ही उसके पीछे दौड़ता रहता है वह मृग मारीचिका में ही अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देता है । जबकि व्यक्ति स्वयं ही सुख का मूल है। यदि हमें जीवन का सत्य जानना है तो सत्संग में जाना चाहिए। जिसकी बुद्धी पर धूल जमी हो तो जो होता है वह दिखाई नहीं देता जो नहीं होता है वह दिखाई देता सत्संग उस धूल को साफ कर जीवन के सत्य का बोध कराता है।
जिसके पास बोध स्वरूप दैविक बुद्धि होती है वह भाग्यशाली होता है।हमारे जीवन पर संगत का बहुत प्रभाव होता है । बादलों से निकली एक बूंद जब पत्ते पर गिरती है तो ओस बन जाती है, सांप के मुख गिरती है तो जहर बनती है और वही बूंद सीप में गिरती है तो मोती बन जाती है इसी लिए जीवन को सफल बनाने के लिये संतों एवं जागृत पुरुषों का संग बहुत जरूरी होता है।
इस अवसर पर लाला रूप नारायण, श्रीभगवान सैनी,महेश कोशल,इन्दु वैद्य, ममता,राजकुमारी, पंकज वशिष्ठ आदि की विशेष उपस्थिति रही।संचालन डॉ उमाशंकर राही ने किया