कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस जाने से ठीक पहले भारत और चीन के बीच बड़ी डील हुई. 5 साल से पूर्वी लद्दाख में बॉर्डर पर जो तनातनी चल रही थी, वो कई बैठकों के बाद आखिरकार समाप्त हो रही है. बाद में पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाथ मिलाए और बात भी की. आज ताजा स्थिति यह है कि विवादित क्षेत्रों से चीन के तंबू उखड़ गए हैं. ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि शायद अमेरिका ने कोई भूमिका निभाई हो. अब बाइडन सरकार ने स्थिति स्पष्ट की है.
अमेरिका ने कहा कि वह भारत-चीन सीमा पर तनाव की स्थिति कम होने का स्वागत करता है. साथ ही कहा कि नई दिल्ली ने इस संबंध में उसे जानकारी दी है. विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने पत्रकारों से कहा, ‘हम भारत और चीन के बीच के घटनाक्रम पर करीब से नजर रख रहे हैं. हम समझते हैं कि दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा पर टकराव वाले बिंदुओं से सैनिकों को वापस बुलाने के लिए शुरुआती कदम उठाए हैं. हम सीमा पर तनाव की स्थिति में किसी भी कमी का स्वागत करते हैं.’
इसी दौरान एक सवाल किया गया तो मिलर ने साफ कहा कि अमेरिका की इसमें कोई भूमिका नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हमने अपने भारतीय साझेदारों से बात की है और हमें इसकी जानकारी दी गई है, लेकिन हमने इस समाधान में कोई भूमिका नहीं निभाई है. इससे पहले मंगलवार को रक्षा सूत्रों ने बताया था कि दोनों देशों के सैनिकों ने पूर्वी लद्दाख के देपसांग मैदानों और डेमचोक में अस्थायी ढांचों को हटा दिया है. सैनिकों को अब पीछे के क्षेत्रों में तैनात किया गया है, और पेट्रोलिंग छोटे-छोटे दलों के साथ होगी, जिनमें 10 से 15 सैनिक शामिल होंगे.
जून 2020 से भारत और चीन के बीच एलएसी पर तनाव बना हुआ है. तब गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच संघर्ष हुआ था और दोनों ओर से सैनिक हताहत हुए थे. एलएसी पेट्रोलिंग समझौता 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन से पहले घोषित किया गया था. सम्मेलन रूस के कजान में 22 से 24 अक्टूबर के बीच हुआ था. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भाग लिया.