जीरकपुर
बलटाना के पार्क में चल रही राम कथा के तीसरे दिन भक्तों को राम विवाह के बारे में बताया गया। कथा में कथावाचक पंडित श्याम बिहारी मिश्रा ने विस्तारपूर्वक से राम विवाह के बारे में भक्तों को बताया गया। देवी सीता का जन्म धरती से हुआ था। एक बार राजा जनक हल चला रहे थे और अचानक से खेत में उन्हें कन्या मिली। राजा जनक ने इस कन्या का नाम सीता रखा और यही कारण है कि देवी सीता को जनकनंदिनी के नाम से भी पुकारा जाता है।
राजा जनक देवी सीता को बेटी के रूप में पा कर बेहद आनंदित हुए। एक बार की देवी सीता ने वह धनुष उठा लिया जिसे परशुराम जी के अलावा कोई नहीं उठा सकता था। तब राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो भी शिवजी के इस धनुष उठा सकेगा उसी से वे अपनी बेटी सीता का विवाह करेंगे। देवी सीता बड़ी हुई तो राजा जनक ने देवी सीता का स्वयंवर रखा। स्वयंवर में भगवान राम और लक्ष्मण ने भी भाग लिया।


शिवजी के इस धनुष को कोई भी नहीं उठा पा रहा था। राजा जनक निराश हो गए और उन्होंने कहा कि “क्या कोई भी मेरी पुत्री के योग्य नहीं है?” तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने लगे और धनुष टूट गया। इस प्रकार सीता जी का विवाह राम से हुआ।यह देखकर जनक जी खुश हुए और सीता जी ने प्रभु राम के गले में वरमाला पहना दीं. फिर राम और सीता जी का विधिपूर्वक विवाह कराया गया. शिव धनुष के टूटने से परशुराम जी बहुत क्रोधित हुए और वे स्वयंवर में पहुंच गए. जब प्रभु राम से उनका परिचय हुआ, तो वे समझ गए कि ये कोई और नहीं भगवान विष्णु ही हैं. फिर वे वहां से चले गए