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पतलून : एक सपने के नाम पूरी जिंदगी

कमलेश भारतीय
रंग आंगन नाट्योत्सव मे कल शाम खुद अभिनय रंगमंच की टीम के साथ मनीष जोशी बाल भवन में अपने नाटक पतलून के मंचन के लिये उतरे । यह नाटक असल में एक गरीब आदमी के सपने पर आधारित है जो अपने एक छोटे से सपने को पूरा करने के लिए सारी जिंदगी लगा देता है और जब सपना पूरा होता है तब वह दम तोड़ देता है । सपने के लिये वह एक एक पैसा जोड़ता है लेकिन उसे एक जादूगर ही लूट कर चला जाता है । वह फिर पैसे इकट्ठे करने शुरू करता है । असल में एक युवक के बूट पाॅलिश करते समय पैंट पर पाॅलिश का दाग रह जाता है और वह युवक बहुत बुरा भला कहकर डांटता है जिससे वह सपना देखता है कि वह भी एक शानदार पतलून लेकर ही रहेगा लेकिन इस पतलून को खरीदने /पाने का सपना देखते उम्र बीत जाती है और युवा उसे पतलून बाबा कहकर चिढ़ाने लगते हैं । इसके बावजूद वह पतलून पाने की कोशिश नहीं छोड़ता । यहां तक कि उसके सपनों में भी पतलून ही आती है । सपनों की खिल्ली उड़ाये जाने के बावजूद वह आदमी अपना सपना नहीं छोड़ता । यही छोटे लोगों की नियति है । यही संघर्ष और यही कहानी !


लेखक निर्देशक व एक्टर मनीष जोशी ने इसे बहुत खूबसूरत ढंग से प्रस्तुत किया । खुद सूत्रधार की भूमिका में रहे ! रामनारायण गर्ग ने अपने अभिनय से इसे जीवंत कर दिया । अविस्मरणीय । राखी जोशी एक सपने की तरह आती है और दर्शकों को प्रभावित करती है । सहायक भूमिकाओं में कबीर दहिया, अतुल ल॔गाया व अन्य ने भी अपनी भूमिकाओं से प्रभावित किया ।
इससे पहले कुरूक्षेत्र से आई रंगटोली ने अमित के निर्देशन में प्रसिद्ध पंजाबी कवि पाश की कविताओं का भावपूर्ण मंचन उसके प्रकाश कौर से प्रेम से लेकर क्रांतिकारी कवि बनने तक का मंचन किया । प्रकाश कौर से ही अवतार सिह संधू पाश बने थे और अपनी क्रांतिकारी सोच व कविताओं के चलते आतंकवादियों के निशाने पर आ गये थे और आखिर शहीद भगत सिंह की शहादत वाले दिन ही उन्हें 23 मार्च को काहमा गांव में गोलियों से छलनी कर दिया गया था ।
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना !
सबसे खतरनाक होता है
एक मुर्दा शांति से मर जाना !
हमारे सपनों का मर जाना !
इस तरह पाश को स्मरण किया गया और एक छोटी सी वीडियो भी दिखाई गई । उनकी कविता मैं विदा होता हूं के साथ ही यह नाटक शुरू होता है ।


दूसरा नाटक इसी रंगटोली ने मंचित किया – आखिरी काॅल । यह सुनील पंवार की कहानी पर आधारित है । इसमें लेखक अपनी ही कहानी की नायिका को पाने के प्रति दीवानगी की हद तक पहुंच जाता है और इसी में अपनी जान तक गंवा बैठता है । वैसे इसका मंचन फिल्मी ज्यादा है और इससे बचना चाहिये था । कल्पना में ही लेखक और पाठिका को जिस तरह से दिखाया गया वह एकदम फिल्मी हो गया ! आरजू , राज और जैनी ने अपनी भूमिकाओं का अच्छा निर्वाह किया । जिस निर्देशक ने पाश की कविताओं का खूबसूरत मंचन किया वही आखिरी काॅल में इतना रोमानी और फिल्मी कैसे हो गया !
खुशी की बात यह कि कल एक बार फिर बाल भवन में तिल धरने की जगह न रही । यह नाटक व कलाकारों के लिए बहुत बड़ी संजीवनी है । पाश की यह कविता भी खूबसूरत रही :
मै जिंदगी से बहुत पात्र करता था
मैं अपने हिस्से का जीवन तुम्हें देकर जा रहा हूं !
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
जिसे तुम जीवन भर पढ़ती रहो !
मनीष जोशी ने भी धूमिल और अमृता प्रीतम की कविताओं का पतलून में उपयोग किया ।

स्टेज एप के विनय सिंघल से रूबरू : स्टेज एप के संचालक विनय सिंघल से पतलून के शो से पहले लगभग पौने घंटे तक कबीर दहिया ने बातचीत की । इसमें स्टेज एप ने हरियाणा के लगभग तीन हजार कलाकारों को मंच प्रदान करने के साथ ही रोजगार भी प्रदान करने की बात कही । हरियाणवी फिल्मों का भविष्य उज्ज्वल है और सिनेमाघर तक दर्शक को ले जाना बहुत बड़ी चुनौती ! यह बहुत सार्थक बातचीत रही ।

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