कमलेश भारतीय
राजनीति क्या है ? सत्याग्रही से सत्ताग्रही तक का सफर ? या यात्राओं से सत्ता तक का सफर ? शायद दोनों जरूरी मजबूरियां हैं । सत्याग्रह का चलन महात्मा गांधी ने चलाया था । स्वतंत्रता पूर्व हर विचार को वे सत्याग्रह के माध्यम से लोगों तक जोड़कर आगे बढ़ते गये और देश को बिना खडग, बिना ढाल आजादी दिलाने में सफल रहे । बेशक परदे की झांसी रानी यानी कंगना रानौत इसे भीख कहती हैं ! तब उद्देश्य इतना ही था । इसलिये महात्मा गांधी ने कहा भी था कि काग्रेस का उद्देश्य पूरा हो चुका , अब इसकी जरूरत नही ! फिर भी कांग्रेस ने देश की वागडोर संभाली और नरेंद्र मोदी के शब्दों में साठ साल काग्रेस को दिये तो साठ महीने हमें भी दे दीजिए और जनता ने दे दिये ! अच्छे दिन आने वाले है सुनकर ! इनका सत्याग्रह सफल हुआ और सत्ता मिल गयी ! अब भाजपा तो पिछले दो लोकसभा चुनाव जीतकर शासन कर रही है जबकि कांग्रेस सत्ता की राह तलाश रही है और हरियाणा में भाजपा नेता विप्लव देव कहते हैं कि कांग्रेस के पास नेता नहीं , सिर्फ गांधी परिवार है और उसकी धूप बत्ती करने को जनता अब तैयार नहीं ! चाहे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा रही , चाहे अब हरियाणा में इनेलो नेता अभय चौटाला की परिवर्तन यात्रा है , ये यात्रायें खुद के परिवर्तन को लेकर ज्यादा हैं कि अगले चुनाव में क्या करना है !
दूसरी ओर राहुल गांधी कह रहे है कि भाजपा सत्ताग्रही है जबकि काग्रेस सत्याग्रही! यह बात रायपुर के कांग्रेस अधिवेशन में कही । उनके निशाने पर आरएसएस और भाजपा रहे ! स्वाभाविक है यह ! वे बता रहे हैं कि मैं बावन साल का हो गया पर हमारा कोई घर नहीं है ! अडाणी पर हमला बोलते कहा कि हमारी आजादी की लड़ाई भी ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ शुरू हुई थी और अब इतिहास खुद को दोहरा रहा है !
इस तरह विचारों की लड़ाई और सत्ता की लड़ाई एकसाथ शुरू हो चुकी है । सन् 2024 की लड़ाई बहुत तेज होती जा रही है । सत्याग्रह भी और सत्ताग्रह भी तेज होता जा रहा है । जो कुर्सी से चिपक गया वह सत्ताग्रही और जो सत्ता से बाहर वो सत्याग्रही ! सीधे सी बात है सज्जना, गल्लां ने बथेरियां !
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