कोर्ट ने कहा है कि अगर पति-पत्नी का रिश्ता इतना खराब हो चुका है कि अब सुलह की गुंजाइश ही न बची हो, तो कोर्ट भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए 6 महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा।
कोर्ट ने कहा कि उसने वे फैक्टर्स तय किए हैं, जिनके आधार पर शादी को सुलह की संभावना से परे माना जा सकेगा। इसके साथ ही कोर्ट यह भी सुनिश्चित करेगा कि पति-पत्नी के बीच बराबरी कैसे रहेगी। इसमें मैंटेनेंस, एलिमोनी और बच्चों की कस्टडी शामिल है।
जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, ए. एस ओका, विक्रम नाथ और जे. के महेश्वरी की संवैधानिक बेंच जिस मुद्दे के तहत सुनवाई कर रही थी, वह था कि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 13बी के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए अनिवार्य किया गया 6 महीने का समय हटाया जा सकता है या नहीं।
हालांकि सुनवाई के दौरान संवैधानिक बेंच ने इस मुद्दे पर सुनवाई करना तय किया कि शादी अगर पूरी तरह टूट चुकी है तो क्या इसे तलाक देने का आधार माना जा सकता है या नहीं। इसे लेकर कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि अगर दंपती के तलाक के पिछले फैसले में जो भी शर्तें रखी गई हैं, अगर वे पूरी होती हैं तो आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए 6 महीने का इंतजार करना जरूरी नहीं होगा।