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सच कहने वाले सुकरात हो या सफदर , फांसी ही सजा फिर

कमलेश भारतीय
कल रंग आंगन नाट्योत्सव में दो नाटक मंचित किये गये । ये दोनों ही नाटक पंजाब के अबोहर से आई नटरंग रंगटोली ने मंचित किये । पहला नाटक सुकरात रहा जो एक प्रकार से अपने समय में सच बोलने वाले हर व्यक्ति का नाटक था ।

फिर चाहे वह कबीर हो या फिर नुक्कड़ नाटक खेलने वाला सफदर हाशमी । यह दुनिया का दस्तूर हे कि अपने समय में सच सोलने वाले को फांसी लगाकर चुप करा देना जबकि यह बहुत बड़ी भूल होती है । कभी किसी सुकरात की आवाज दबाई नहीं जा सकती बल्कि समय के साथ साथ और बुलंद होती जाती है ।

सुकरात को उनके शिष्य जेल से छुड़ाकर भगाने की योजना बनाते हैं लेकिन वे इससे इंकार करते कहते हैं कि ऐसा करने से मेरा शरीर तो बच जायेगा लेकिन मेरे विचार मर जायेंगे । यदि मेरे देश के लोग ही मुझे समझ नहीं पाये तो दूसरे देश के लोग मेरे विचार कैसे समझेंगे ! सुकरात को सच बोलने पर राष्ट्रद्रोही करार दिया जाता है और यह हर विद्रोही व्यक्तित्व के साथ होता आया है । अपने समय में कबीर को कितने विरोधों का सामना करना पड़ा ! समाज नये विचार के साथ न जाकर पुराने ढर्रे पर ही चलते रहना चाहता है । सुकरात के विचारों को उनके शिष्य प्लेटो आगे बढ़ाते हैं और यही प्रचलन आज तक जारी है । सफदर के विचार को उनकी पत्नी माला हाशमी ने आगे बढ़ाया ! इसी तरह सच का काफिला चलता आ रहा है ।
दूसरे नाटक जी आइआं नूं में एक बार फिर वृद्धावस्था का अकेलापन , बच्चों द्वारा उपेक्षा और काट खाने को दौड़ता घर ! रेल यात्रा के बाद घर लौटते हुए संयोग से एक ही कार में सवार मिस्टर सोढी और मिसेज अरोड़ा का परिचय होता है और वह मिसेज अरोड़ा को अपने जीवन प्रभाव पत्र का ब्यौरा बैंक को भेजने का फाॅर्म भरवाने घर पर ही आने को मना लेता है । फिर घटनाक्रम तेजी से घटता है । मिसेज अरोड़ा के जन्मदिन की बात मिस्टर सोढी संघ लेते हैं और फटाफट बर्थडे केक और लाइट्स लगवा कर बर्थडे मना देते हैं । मिस्टर सोढी का बेटा ही विशेष से फादर डे की बधाई देता है और उनकी आखें भर आती हैं अपने अकेलेपन के अहसास से ! फिर दोनों खाना मिलकर बनाते , खाते हैं और अंत में मिसेज अरोड़ा अपनी अंतरात्मा की आवाज मान कर एकसाथ रहने की हां भर देती है और सोढी साहब जी आइयां नूं बोल देते हैं । इसमें हास्य का पुट इसे दर्शकों से जोड़कर रखता है । पड़ोसी शर्मा आकर सोफे पर मिसेज सोढी के साथ बैठकर अपने फाॅर्म भरने को कहता है और उसका पोता बड़ी मुश्किल से उसे लेकर जाता है । नाटक जीना इसी का नाम है के ही मूल थीम पर आधारित है लेकिन इसका रूपांतर नहीं है । फिर भी बारिश यहां भी है, छाता भी है और जीवन की सांध्य बेला में अपने अपने अकेलेपन का श्राप भोगते दो वृद्ध हैं जो अपनी संतान की उपेक्षा के शिकार होने के चलते एकसाथ रहने को स्वीकार कर लेते हैं ।
नाटक में गुरविंदर सिंह ने मिस्टर सोढी और गुलजिंदर कौर ने मिसेज अरोड़ा की मुख्य भूमिकाएं निभाईं । अन्य भूमिकाओं में संदीप शर्मा , वैभव अग्रवाल , वासु सेतिया , कश्मीर व युद्धवीर लूना आदि थे ।
दोनों नाटकों का निर्देशन भूपेंद्र अतरेजा ने किया । खुद ही सुकरात की भूमिका भी निभाई ।

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