-कमलेश भारतीय
बड़े प्रेम व श्रद्धा से बनाई दादा लखमी फिल्म यशपाल शर्मा की लाख कोशिशों के बावजूद आर्थिक घाटे का बुरी तरह शिकार हुई यह रहस्योद्घाटन किसी और ने नहीं बल्कि खुद यशपाल शर्मा ने किया है । यशपाल शर्मा ने बताया कि इस फिल्म के निर्माण पर पौने चार करोड़ रुपये खर्च हुए जबकि अब तक सिर्फ 34 लाख रुपये की ही रिटर्न मिली । इससे हालात यह बन गये हैं कि मुम्बई में मेरे दो घरों में से एक घर को बेचने की नौबत आ गयी है । तौबा ! तौबा ! ऐसे हालात रहे तो कौन कमबख्त बनायेगा हरियाणवी फिल्म ? आज तक अगर किसी हरियाणवी फिल्म ने कमाई का रिकॉर्ड बनाया है तो वह इकलौती फिल्म है -चंद्रावल । यह फिल्म अकेले हरियाणा में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में भी सिल्वर जुबली मनाने वाली सफलतम हरियाणवी फिल्म रही । न इससे पहले और न इसके बाद कोई और हरियाणवी फिल्म इस सफलता को दोहरा नहीं पाई ।
दादा लखमी के सिरसा के निकट एक गांव में मुहूर्त शाॅट से लेकर कुरूक्षेत्र फिल्म उत्सव में स्क्रीनिंग और फिर हिसार की सडकों पर ‘दादा लखमी एक त्योहार है’ के पोस्टर लेकर चलने वालों में मैं भी एक था और यह दुआएं करने वालों में भी मैं भी एक था कि यह फिल्म सफल हो जाये और यशपाल की बरसों की मेहनत रंग लाये लेकिन सभी की दुआएं बेअसर रहीं और यह कड़वा सच सामने आया कि आज भी हरियाणवी फिल्म बनाना घाटे का सौदा है और इसे बनाने के लिए , खतरा मोल लेने के लिये कोई आगे क्यों नहीं आता ! पहले तो इसे प्रोड्यूसर भी हरियाणा से नहीं मिला । राजावत राजस्थान के हैं और उन्होंने हरियाणवी फिल्म के लिये हाथ बढ़ाया यह भी बड़ी बात रही ।
यशपाल शर्मा ने दादा लखमी को प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी ! अपने बजट से बाहर जाकर अखबारों में विज्ञापन तक दिये । हर बड़े शहर में जाकर फिल्म के पोस्टर के साथ सड़क दर सड़क पसीना बहाया ! फिर भी दादा लखमी को सफल नहीं करवा सके यशपाल !
कुछ भले लोगों ने इसे एक वर्ग के साथ जोड़कर भी इसका दुष्प्रचार किया और कुछ ने इसकी मेकिंग में ऐसे ऐसे अवगुण गिनाये जैसे कि वे बहुत फिल्में बनाने का अनुभव रखते हों ! रिसर्च नहीं की , तथ्य गलत है आदि आदि जो मन मेः आया सोशल मीडिया पर अपने ज्ञान का प्रदर्शन किया । यशपाल शर्मा का कहना है कि शाहरुख खान की पठान फिल्म की तरह दादा लखमी 5500 सिनेमाघरों में रिलीज नही हुई बल्कि मुश्किल से पंद्रह सिनेमाघरों में रिलीज हो पाई फिर रह पठान जैसी करोड़ क्लब में कैसे शामिल हो पाती ?
इस तरह यह फिल्म शैलेंद्र की तीसरी कसम जैसे हश्र तक पहुंच गयी । प्रसिद्ध गीतकार शैलेंद्र भी रेणु की कहानी तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम को बिहार से प्रेम और माटी का कर्ज उतारने के लिये बनाने का सपना देखकर कर्ज में बुरी तरह डूब कर इस दुनिया से कूच कर गये ।
यशपाल एक हिम्मती इंसान है और खुशमिजाज भी , संघर्षशील भी । वैसे इनसे पहले पगड़ी-द ऑनर बनाने वाले राजीव भाटिया और सतरंगी बनाने वाले संदीप शर्मा को भी आर्थिक घाटा सहना पड़ा था । राजीव भाटिया को भी मुम्बई में बड़ा मकान बेचकर छोटे घर मे शिफ्ट होना पड़ा था । हरियाणा मे तीन-तीन फिल्मों पगडी-द ऑनर, सतरंगी और दादा लखमी को राष्ट्रीय पुरस्कार जरूर मिले लेकिन आर्थिक घाटे को पूरा नहीं कर पाये ये पुरस्कार ! इस तरह बहुत बड़ा सवाल है कि क्या हरियाणवी फिल्म पर अब कोई पैसा लगाने को तैयार होगा ? सिर्फ स्टेज एप ही एक रोशनी की किरण बन कर आया है जिससे अनेक प्रोडक्शन सामने आ रही हैं जिससे हरियाणवी कलाकारों को मंच मिल रहा है और रोज़गार भी !
दुष्यंत कुमार के शब्दों में :
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कंवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं !
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