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मज़दूरों को श्रमिक बोर्ड से ना मिल रही सहायता ना हो रहा है पंजिकरण

सरकाघाट। व्यवस्था परिवर्तन का नारा बुलंद करने वाले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार निर्माण व मनरेगा मज़दूरों की दुश्मन व उनकी सहायता छीनने वाली साबित हो रही है। जिसने एक तरफ़ श्रमिक कल्याण बोर्ड से पंजीकृत साढ़े चार लाख मज़दूरों को मिलने वाले सारे लाभ रोक दिए हैं वहीं दूसरी तरफ बोर्ड से मज़दूरों का पंजीकरण और नवीनीकरण भी रोक दिया है।राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड के सदस्य एवं निर्माण मज़दूर यूनियन के राज्य महासचिव भूपेंद्र सिंह ने बताया कि बोर्ड में वर्ष 2019 में 39872 वर्ष 2020में 91136 वर्ष 2021 में 70074 और 2022 में 70296 निर्माण व मनरेगा मज़दूर पंजीकृत हुए थे लेकिन जब से प्रदेश में तथाकथित व्यवस्था परिवर्तन हुआ है तो इस साल राज्य श्रमिक कल्याण बोर्ड में मज़दूरों का पंजीकरण मात्र 1686 ही हुआ है और पहले से पंजीकृत मज़दूरों का नवीनीकरण भी नहीं किया जा रहा है।

भूपेंद्र सिंह ने कहा कि प्रदेश में बनी सुखू के नेतृत्व वाली सरकार का यह सबसे ज्यादा मज़दूर व ग़रीब विरोधी निर्णय है जिसने प्रदेश के पहले से पंजीकृत साढ़े चार लाख मज़दूरों के लगभग पांच सौ करोड़ रुपये की सहायता राशी को जारी करने से भी रोक दिया है और साथ ही मज़दूरों को बोर्ड से पंजीकृत करने का काम भी रोक दिया है।ये दोनों फ़ैसले भवन एवं अन्य निर्माण मज़दूर क़ानून 1996 की उलंघन्ना भी हैं वहीं इस सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों का परिचायक भी है।यही नहीं सुक्खू सरकार ने मनरेगा मज़दूर जो निर्माण मज़दूर भी हैं उन्हें बोर्ड से बाहर करने का भी निर्णय लिया है जो क़ानून के विपरीत है।वहीं दूसरी तरफ सरकार ने बोर्ड में प्रत्येक ज़िला में श्रम कल्याण अधिकारी माह फ़रवरी में नियुक्त किये हैं जबकि पिछले दस साल से ये काम श्रम विभाग के अधिकारी अपने विभागीय कार्यों के बाद ही करते थे और प्रदेश में लाखों मज़दूर पंजीकृत हुये हैं और उन्हें करोड़ो रूपये की सहायता प्रदान की गई थी लेकिन अब अधिकारी तो लगा दिए हैं लेकिन सारा काम रोक दिया गया है।

प्रदेश सरकार जो वित्तिय घाटे के कारण बहुत से नए विकास के काम करने में अपनी असमर्थता बता रही है लेकिन बोर्ड में सरकार कोई पैसा खर्च नहीं करती है और इसमें जो आय आती है वह निर्माण कार्य को करने वाले ठेकेदार व कम्पनियां बतौर सेस अदा करती हैं। बाबजुद इसके इस सरकार ने ये सब किया है जिसका प्रभाव लाखों मज़दूरों के ऊपर पड़ा है।सरकार के इस फ़ैसले का सीटू से सम्बंधित मज़दूर यूनियन पिछले दिसंबर माह से कर रही है लेकिन सुखू सरकार इसे बहाल नहीं कर रही है।इसलिये अब 1 नवंबर से यूनियन गांव हस्ताक्षर अभियान और जनजागरण अभियान शुरू करने जा रही है और 25 नवंबर को शिमला सचिवालय का घेराव किया जायेगा और लाखों मज़दूरों के हस्ताक्षर मुख्यमंत्री को सौंपे जाएंगे और उसके बाद भी इस सरकार व बोर्ड ने मज़दूरों की सहायता बहाल नहीं कि तो अगले लोकसभा चुनावों में इन्हें सबक सिखाने के लिए अभियान चलाया जाएगा।

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