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करनाल में मजदूरों ने सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की

आज अंतर्राष्ट्रीय मजूदर दिवस है और अपनी मांगों को लेकर मजदूर और विभिन्न विभागों से जुड़े कर्मचारी करनाल की सड़कों पर उतर आए। करनाल की सड़कों पर मजदूर एकता जिंदाबाद के नारे गूंज उठे। मजदूरों ने सरकार के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी की। मजदूरों का प्रदर्शन फ्वारा चौंक से शुरू हुआ और मटका चौंक पर खत्म हुआ। प्रदर्शन में भारी संख्या में महिलाएं भी शामिल हुई। जिन्होंने सरकार की नियत और नीति पर भी सवाल उठाए। बीते दिनों करनाल के तरावड़ी में राईस मिल की तीन मंजिला इमारत गिरने के बाद मलबे में दबने से 5 मजदूरों की मौत हो गई थी इसको लेकर भी आज प्रदर्शन पहुंचे कर्मचारियों ने मिल मालिक के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए मृतकों के बच्चों के शिक्षा और उनके पालन पोषण का खर्च उठाने की मांग की,

प्रदर्शन करने पहुँचे कर्मचारियों ने कहा विश्व मजदूर दिवस मनाया जा रहा है। मजदूरों के लिए यह दिन किसी बड़े त्यौहार से कम नहीं होता, लेकिन त्यौहार वाले दिन ही मजदूर अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर है और सरकार के खिलाफ नाराजगी जता रहे है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मजदूर सरकार से कितने परेशान हो चुके है। कई सालों से मजदूर अपनी मांगों को लेकर आवाज उठा रहे है। सरकार ने मजदूरों की मांगों को जायज भी ठहराया है लेकिन उन मांगों को जायज मानते हुए भी लागू नहीं किया गया। बार-बार सिर्फ आश्वासन मिलते है लेकिन आश्वासन कभी पूरे नहीं होते। वर्ष 1923 से मजदूर दिवस लागू किया गया था लेकिन लगभग 100 वर्ष बाद भी मजदूरों के हालात जैसे पहले थे वैसे ही आज भी है। कुछ सुधार नहीं हुआ। मजदूरों को लेकर राजनीति तो कई गई लेकिन राजनीति करने वाले तथाकथित नेताओं ने कभी मजदूरों की भलाई का काम नहीं किया।

बिजनेश राणा ने कहा कि मजदूरों ने अपने हकों की लड़ाई लड़ी और कानून भी बनवाए, लेकिन आज उन हकों पर ही कुठाराघात हो रहा है। चाहे मजदूर हो, किसान हो, कर्मचारी हो, उसका शोषण होता आया है। मेहनताना भी मजदूरों और कर्मचारियों को समय पर नहीं मिलता। बिल्डिंग में दब जाते है मजदूर, मजदूर नेताओं का कहना है कि मजदूर हर परिस्थिति में अपने पेट के लिए काम करता है लेकिन जो सुविधाएं मजदूरों को मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल पाती। बीते दिनों तरावड़ी की राइस मिल में तीन मंजिला ईमारत गिरने से पांच मजदूरों की मौत हो गई थी, जबकि अन्य घायल भी हुए थे। एक कमरे के अंदर 20-20 मजदूरों को रखा गया था। बिल्डिंग भी पुरानी हो चुकी थी और खतरा भी था लेकिन मजदूरों की जान से किसी को भी कोई सरोकार नही था। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि मजदूरों के साथ क्या क्या होता है। अगर राइस मिल मालिक बिल्डिंग पर समय रहते ध्यान देते और मजदूरों को कहीं ओर शिफ्ट कर देते तो शायद पांच मजदूरों की जान ना जाती। इसके अलावा बड़ी बात यह भी है कि मृतक मजदूरों व घायलों को भी समय पर मुआवजा तक नहीं दिया गया।

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