सरयू की लहरों से जवां कैसरगंज संसदीय क्षेत्र की आंखें थक गईं हैं। सियासत में कभी हनक रखने वाले क्षेत्र के मैदान में सूनापन सबको अखर रहा है। नेताओं के कद की पहचान बढ़ाने वाला रण खाली है। न रंग है और न ही रौनक। बस कयास है। कौतूहल है। किस्से हैं और करामात की उम्मीद भी। नहीं है तो बस कोलाहल। वक्त की मार और चुनावी समीकरण की साध देखिए कि यहां के लिए दलों को लड़ाके ही खोजे नहीं मिल रहे। हर बार जारी होने वाली सूची में दावेदार तय होने की चर्चा होती है, लेकिन हाथ लगता है इंतजार। टिकट के इस दांव से दबदबे का दम ही घुटने लगा है। भाजपा ने तो मानों कदम ही रोक रखे हैं, लेकिन सपा व बसपा को भी कुछ सूझ नहीं रहा, जबकि तीनों दलों में लड़ाके दस्तक दे चुके हैं। पर ठौर नहीं मिल रही है। कैसरगंज का मैदान अभी टिकट के दांव में ही उलझा हुआ है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि पार्टियों के हाथ रुके हुए हैं। अब तो कैसरगंज के माझा से लेकर उपरहर क्षेत्रों में इसकी चर्चाएं शुरू हो गईं हैं। हर साल बाढ़ का दंश झेलने वाले क्षेत्र में दावेदारों के सूखे से बेचैनी बढ़ गई है। रामगढ़ गांव के शिवाकांत कहते हैं कि यहां अब पार्टियों की देरी खल रही है। हर क्षेत्र में प्रत्याशी तय हैं और प्रचार हो रहा है। यहां तो कोई पूछने वाला ही नहीं है। भौरीगंज के ओमप्रकाश कहते हैं कि जिसे भी देना हो टिकट दे देना चाहिए था। इस तरह हर बार कोई नाम न आना अच्छा नहीं लगता। कम से कम यहां भी लोग संपर्क करते। दावेदार तय न होने से सियासी माहौल बन ही नहीं रहा। पूरे क्षेत्र में अजीब सा सन्नाटा है। मतदाता इस बात को लेकर भी चौंके रहे हैं कि भाजपा में विपरीत परिस्थितियां हो सकती हैं, जिससे देरी हो रही है। सपा व बसपा आखिर क्यों चुप्पी साधे हैं। इन दोनों पार्टियों की आखिर क्या मजबूरी है। यह बात गले नहीं उतर रही है कि पहले भाजपा से प्रत्याशी तय हो तो अन्य दल फैसला लेंगे।
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